जब दिल्ली में संभव तो यहां क्यों नहीं? आंध्र प्रदेश में क्यों हो रही केजरीवाल और AAP की चर्चा

आंध्र प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष अय्यन्ना पात्रुडू ने पूर्व मुख्यमंत्री और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के प्रमुख वाईएस जगन मोहन रेड्डी को विरोधी दल का नेता यानी नेता विपक्ष का दर्जा देने से इनकार कर दिया है। स्पीकर के इस इनकार के बाद राज्य में बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। विधानसभा अध्यक्ष ने जगन मोहन रेड्डी की इस मांग को ‘अनुचित इच्छा’ करार दिया है और कहा है कि नेता विपक्ष पद के लिए किसी भी पार्टी के पास विधानसभा में कम से एक 1/10वां हिस्सा होना चाहिए। राज्य विधानसभा में कुल विधायकों की संख्या 175 है। इस लिहाज से नेता प्रतिपक्ष के लिए कम से कम 18 विधायक होने चाहिए, लेकिन वाईएसआर कांग्रेस के पास सिर्फ 11 विधायक हैं।

पिछले साल लोकसभा चुनाव के साथ-साथ हुए विधानसभा चुनावों में जगन मोहन रेड्डी को न सिर्फ मुख्यमंत्री पद गंवाना पड़ा था बल्कि उनकी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। 2019 में 152 सीटें जीतने वाली वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को सिर्फ 11 सीटें मिली थीं, जबकि चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी ने 22 सीटों से 135 सीटों तक की छलांग लगाई थी। टीडीपी से सहयोगी भाजपा को भी आठ सीटें मिली थीं।

पूर्व मुख्यमंत्री रेड्डी के अनुरोध को खारिज करते हुए विधान सभा अध्यक्ष ने अपने फैसले में कहा, “विपक्ष के नेता के पद के लिए पात्रता पूरी तरह से संवैधानिक प्रावधानों, कानूनी आदेशों और स्थापित मिसालों के अनुसार निर्धारित की जाती है।” अपने फैसले को पुष्ट करने के लिए विभिन्न नियमों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “तदनुसार, आंध्र प्रदेश की 175 सदस्यीय विधानसभा में, जब तक विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी न्यूनतम 18 सदस्यों की ताकत हासिल नहीं कर लेती, तब तक ऐसे दल के नेता को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देने पर विचार करना पूरी तरह से विवेक पर आधारित नहीं होगा।”

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